Monday, December 12, 2011

पराये धन का भार


  पराये धन का भार 



         शनिवार  सुबह गली से किसी के भजन गाने की आवाज़ सुनाई दी . घर से बाहर निकल कर देखा तो गली में तीन व्यक्ति देवी के भजन गाते हुए  नज़र आये .बड़ी मधुर आवाज़ में तीनों चलते-चलते माता का भजन गा रहे थे . तीनों नेत्र-हीन भी थे .इतने में मेरा बेटा भी उनकी आवाज़ से आकर्षित होकर बाहर आ गया .मेरा बेटा और मेरी तरह गली के और भी बहुत से लोग अपने-अपने घरों से बाहर आ गए थे .

    तीनों नेत्र-हीनों ने पीले रंग के वस्त्र  पहने हुए थे . मेरे बेटे ने एवं गली के कुछ और लोगों ने भी उन्हें कुछ रुपये देने चाहे ,किन्तु उन लोगों ने किसी से भी कुछ भी स्वीकार नहीं किया .

सब को बहुत हैरानी हुई कि सुबह-सुबह गली में गाते हुए घूम भी रहे हैं और किसी से कुछ ले भी नहीं रहे .
क्यों  ?

हैरान मैं भी था , अतः मैंने उन्हें अपने पास बुलाया और उनसे पूछा , " आप लोग गली में भजन गाते हुए घूम रहे हैं , तो किसी के द्वारा दी जा रही भेंट स्वीकार क्यों नहीं कर रहे  ? यदि कोई ख़ास वजह न हो तो बताइए .

तीनों में से एक वृद्ध ,एक २४-२५ वर्ष की आयु का नवयुवक एवं तीसरा ४० वर्ष के आस-पास का व्यक्ति था .

मध्यम  आयु का व्यक्ति बोला , '' भगत जी  ,  फ़िज़ूल की बातें करने से तो अच्छा है कि हर वक़्त ज़ुबान पे माता का नाम रहे इसीलिए चलते हुए भी माता रानी के गीत गाते रहते हैं , अच्छा लगता है , हमें भी और सुनने वालों को भी .''

'' यह तो बहुत सुन्दर विचार है , सुनकर हम सब को भी बहुत अच्छा लगा इसीलिए हम सब लोग अपने-अपने घरों से निकल कर आपके पास आ खड़े हुए हैं , लेकिन जैसा कि अभी मैंने आप से पूछा ,क्या कारण है कि आप लोग किसी की  भी कोई भेंट स्वीकार नहीं कर रहे .'' मैंने जानना चाहा .

वोह महाशय थोड़ा मुस्कुराए और फिर बोले , '' भगत जी , हमारी बात का गलत मतलब मत निकालना और बुरा भी नहीं मानना .हम लोग अंधे जरूर हैं लेकिन भिखारी नहीं हैं , हम लोग लोगों की भीख से अपनी जेबें नहीं भरना चाहते .इसीलिए गली-गली माता का गुण-गान ज़रूर करते फिरते हैं पर घर-घर  से भीख नहीं मांगते .''

 " फिर भी कोई वज़ह तो होगी जो  आप लोग गलियों में घूम रहे हैं ? " मैंने फिर आग्रह किया .

" भगत जी ,इन गलिओं में हम लोग पिछले तीन दिनों से घूम रहे हैं . बहुत से लोगों ने दस-बीस रूपये की भीख भी देनी चाही लेकिन किसी ने भी  इतने सम्मान और आग्रह से  हमसे हमारे गलिओं में घूमने के कारण को नहीं जानना  चाहा , आप का प्रेम भाव देखकर बहुत ख़ुशी हुई है , और उम्मीद भी बन्धी है की हमारी आस शायद यहाँ अवश्य पूरी होगी ."

      " यही तो हम सब भी आपसे जानना चाह रहे हैं कि क्या आस लेकर आप लोग गलिओं में गाते हुए घूम रहे हैं ?" मैंने अपनी बात आगे बढाते हुए कहा .

" आस तो है ही , पर कहते भी संकोच महसूस होता है , न जाने सामने वाला हमारे बारे में क्या सोचे , हमारी आस पूरी भी कर पाए  या नहीं ,इसीलिए हर व्यक्ति को अपनी ज़रुरत के बारे में कह भी नहीं पाते , आप यदि हमारी ज़रुरत पूरी करें तो बात मुंह से निकालें ."

उनकी बात सुनकर मैं सकपका गया .

ना जाने कितनी बड़ी इनकी ज़रुरत हो ? बिना जाने कैसे वायदा कर दूँ  .

वैसे तो संसार में किसी का भी बिना जांचे परखे जल्दी से भरोसा कर लेना  कोई बुद्धिमत्ता की बात नहीं , किन्तु न जाने क्यों  इस सत्तर साल से ऊपर के अनुभव के बाद भी मेरा मन उन पर विशवास करना चाह रहा था .

      लेकिन फिर भी बिना जाने-बूझे पहले से ही कोई वायदा कैसे किया जा सकता था , अतः मैंने कहा , '' आप बोलिए तो सही , मैं अपनी सामर्थ्य के अनुसार आप की जो मदद हो सकेगी , अवश्य करूंगा  ''.


    वो महाशय हंसने लगे और फिर बोले , आप ठीक कहते हैं , बिना हमारे कहे कोई कैसे जानेगा कि हमारी ज़रुरत क्या है और वो हमारी कितनी सहायता कर सकता है .

     " बिलकुल ठीक , तो बताइये आप की समस्या क्या है  ? "

     " भगत जी , हम तीनों वैष्णव माता के दरबार जाना चाहते हैं . जम्मू तक रेल से और आगे कटरा तक बस से  जाने का हमारा कोई किराया-भाड़ा नहीं लगता लेकिन उससे आगे दरबार तक जाने के लिए हमें घोड़ों  पर जाना पड़ता है और घोड़े वाले एक घोड़े का ६००/ रुपया लेते हैं , हम तीनों के लिए तीन घोड़े चाहियेंगे , पूरी यात्रा में १० से १५ दिन लग ही जाते हैं , अतः वो भी खर्चा चाहिए होता है "

   "  तो फिर  जब आपको हम लोग पैसे देना चाह रहे हैं तो आप लेने से मना क्यों कर रहे हैं ? " हमारे पड़ोस में रहने वाली एक महिला बोल पडीं .


         " वो इसलिए बेटी जी , कि हम लोग घर-घर , घूम-घूम कर थोड़ा-थोड़ा करके पैसा इक्कट्ठा नहीं करना चाहते . किस-किस का और कितने लोगों के दान का भार अपने सर पर लादें  ? पहले से ही ना जाने किन कर्मों का फल , इस जन्म में अन्धे बन कर भुगत रहे हैं , सर पर इतने ज्यादा लोगों के पराये धन की  गठड़ी का भार नहीं लादना चाहते ."

     " पर बाबा , फिर भी आप लोग गली-गली घूम  रहे  हैं ?"  महिला बोली .

     " वो इसलिए बेटी , कि शायद कहीं कोई ऐसे दानी सज्जन मिल जाएँ जो हमें यात्रा करवा दें . अब देखो हम पिछले तीन दिनों से गली-गली गाते हुए घूम रहे हैं पर किसी ने भी इतने आग्रह से हमसे हमारी आस के बारे में नहीं जानना चाहा . किसी ने पूछा नहीं और  हमने बताया नहीं और आज यहाँ माता रानी ने आप लोगों से मिलवा दिया .आप लोग हमारी मदद कर पायेंगे  या नहीं वो अलग बात है पर जिस प्रेमभाव से आप लोगों ने हमसे बात की है उससे हम लोग बहुत खुश हैं . माता रानी आप सब का भला करे ".

    मैं घर में जाकर अन्दर से रूपये ले आया और आकर उन महाशय को दे दिए ( कितने दिए , वो बताना मैं उचित नहीं समझता ) . नेत्रहीन व्यक्ति नोट को हाथ से छूते हुए टटोल कर उसके मूल्य का अंदाजा भली प्रकार से लगा लेते हैं . उन्होंने भी नोटों को टटोला , गिना और बहुत खुश हो गए . इतने में पडोसी महिला ने भी एक पांच सौ का नोट उन्हें पकड़ा दिया . उन्होंने अपने साथियों को प्राप्त हुई कुल राशि के बारे में बताया  और तीनों मिलकर जोर-जोर से खूब आशीर्वाद की वर्षा करने लगे . माता रानी की कृपा से उनकी मुराद पूरी हो गयी थी और अब वो माता के दरबार में अपनी हाजरी लगा सकते थे .

हमारे पड़ोस में रहने वाला एक और जवान जोड़ा उन लोगों को अपने घर भोजन कराने ले गया .

     मेरे मन में  बार-बार एक ही बात कौंध रही है कि पिछले तीन दिनों से वोह लोग घूम रहे थे और लोग उन्हें थोड़ा-थोड़ा पैसा भी देने को तैयार थे , अगर वोह लोग दो-चार दिन और घूम लेते तो बड़े आराम से दस-बारह हज़ार रुपया बटोर सकते थे , पर उसकी जगह उन्होंने केवल अपनी ज़रुरत भर का पैसा लेना ही ठीक समझा और वो भी केवल एक या दो ही लोगों से . ( मैंने अपनी तस्सल्ली के लिए आस-पास उन लोगों के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की थी तो उन लोगों की बात सच मालूम हुई थी . उन्होंने और किसी से पैसा नहीं लिया था) .

    मेरे मन में जो बात बहुत ज्यादा खटक रही है वो ये कि एक तरफ तो वो तीन नेत्रहीन व्यक्तियों की भावना , कि  ज़्यादा लोगों से इकट्ठा किया हुआ दान का पराया धन भी भारी गठड़ी है जो आदमी के पतन का कारण बन सकता  है और दूसरी तरफ हमारे देश में ऊंचे-ऊंचे पदों पर बैठे लोग हैं जिनका नज़रिया उन नेत्रहीनों के नजरिये से एक दम उलट है .

   मैं सोच रहा हूँ कि हमारा देश अक्ल और कर्मों से अंधे लोगों के ज्यादा संक्षा में होते हुए भी
 आँख से अंधे उन नेत्रहीन  व्यक्तियों जैसे लोगों की भावनाओं के दम पर ही आज भी टिका हुआ है .

आप क्या सोचते हैं ?