Sunday, July 8, 2012

शाकुम्भरी देवी की यात्रा

शाकुम्भरी देवी की यात्रा 
पिछले  सोमवार यानी 2 जौलाई को मैं माता शाकुम्भरी देवी की यात्रा के लिए घर से सुबह 9 बजे निकला था .
बहुत  दिनों से भगवती के दर्शनों की तीव्र इच्छा थी .
2 जौलाई को यह इच्छा माँ जगदम्बा की कृपा से पूर्ण हुई .
माँ शाकुम्भरी के स्थान एवम उसके दरबार का सीधे सीधे वर्णन करने के बजाय मैं पहले भगवती के मन्दिर तक पहुँचने के मार्ग का वर्णन करना भी ज़रूरी समझता हूँ .
तो आइए मेरे साथ यात्रा शुरू कीजिए .
मैं क्योंकि गुडगाँव में रहता हूँ ,तो मुझे गुडगाँव से दिल्ली पार करके गाजिआबाद  होते हुए मेरठ और फिर मुज़फ्फरनगर से देवबन्द होते हुए सहारनपुर का रास्ता पकड़ना था .
मुज़फ्फरनगर से शाकुम्भरी देवी जाने का रास्ता पहले देवबंद और उससे आगे सहारनपुर से होकर जाता है
सहारनपुर से मन्दिर तक की दूरी 42 कि . मी . है
इस 42 कि .मी . में 26 कि .मी.बेहट तक का रास्ता बेहद खराब ऊबड़ --खाबड़ और पथरीला है .इस से पहले देवबन्द  से लेकर सहारनपुर तक  का रास्ता भी बहुत ही खराब है .
मुज़फ्फर नगर के बाद हाई--वे छोड़ कर सहारनपुर के लिए अलग मार्ग पकड़ना पड़ता है जो आगे देवबंद तक बहुत  अच्छा एवं मनोरम है .
देवबन्द , जिसका पुराना और असली नाम  '' देवीवन '' है , आज मुस्लिम धर्म का भारत देश में एक मुख्य केन्द्र  है .
देविवन या देवबन्द एक कस्बा ही है ,जो किसी भी लिहाज से उन्नत नहीं नज़र आता .
यहाँ के मशहूर मुस्लिम धर्म गुरुओं ने अपने शहर और शहर के निवासियों का जन--जीवन सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जान पड़ता.
वैसे उन्होंने बाकायदा किलेबन्दी किया हुआ मशहूर मदरसा और धर्म के फतवे जारी करने का गढ़ ज़रूर बना रखा है .
इसे  इस्लाम जैसे उन्नत और खुदापरस्त धर्म की राह में रोड़ा तो कहा जा सकता है उन्नति का केंद्र नहीं , जो कुछ दशक पहले यह होता था .खैर छोडिये और अपनी राह लगिए .इन्हें अल्लाह के भरोसे छोडिये .


देवबन्द में एक विशाल एवं मनोरम तालाब के किनारे देवी का प्रसिद्ध और अति - प्राचीन मंदिर है .इस मंदिर में वैष्णव -देवी के मंदिर की तरह एक छोटी सी शिला रूप में देवी का विग्रह है . यहाँ विराजमान देवी को शाकुम्भरी देवी की छोटी बहन माना जाता है .
मन्दिर एवं उसके चारों ओर का परिसर ,जिसमें 11 मुखी शिव भी विराजमान हैं अत्यन्त प्रभावशाली एवम श्रद्धा  उत्पन्न करने वाला है .
देवबंद में देवी के दर्शन करके हम लोग आगे सहारनपुर की  ओर बढे .
देवबन्द से सहारनपुर की ओर जाने वाली सड़क पर गर्भवती महिलाओं  को भूलकर भी यात्रा नहीं करनी चाहिए .ये दुस्साहस उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है .
सहारनपुर से शाकुम्भरी देवी जाने के लिए  '' बेहट '' नाम  के कसबे से होकर जाते हैं .
सहारनपुर से बेहट  तक का 26 कि .मी .लम्बा सड़क मार्ग भी बेहद ऊबड़--खाबड़ है .पूरे रास्ते गाडी का सस्पैन्शन या ऐक्सिल टूटने का डर  बना रहता है .इतनी  खराब सड़क होने के बावजूद भी वहाँ के लोकल लोग सड़क पर 20 से 25 की स्पीड पर अपनी गाड़ी  भगाते दिख जाते हैं , शायद उन लोगों को इस टूटी हुई सड़क की आदत पड़  चुकी है .
वहाँ सड़कों की दुर्दशा देख कर जिम्मेदार अधिकारियों की ढिठाई पर आशचर्य होता है .बरसों से खराब इन सड़कों को ठीक रखने के नाम पर सरे--आम हो रही लूट साफ़--साफ़ नज़र आती है .
माता भगवती के दर्शनों की चाह सड़क की दुर्दशा को नज़र--अन्दाज़ करते हुए यात्री को आगे बढ़ते जाने को प्रेरित करती रहती है .
बेहट से शाकुम्भरी देवी की ओर जाने वाली सड़क पर एक प्रवेशद्वार भी बनाया गया है एवम यह 16 कि .मी लम्बा सड़क मार्ग बहुत बढिया और मनोरम भी है .इस 16 कि मी लम्बी सड़क पर यात्रा करते हुए यात्री पिछली सड़कों की दुर्दशा भूल जाता है .
बेहट से 16 कि मी की सुखद यात्रा के बाद यात्री अपने को नदी के एक कछार के किनारे पर पाता है , जो महीन,छोटे--छोटे और बड़े पत्थरों से  भरा है .
आजकल वर्षा ऋतु  का समय है तो उस दिन भी इस कछार में 8 से 10 फुट तक चौड़ी और 3 से 4 इंच तक गहरी 3 जल - धाराएं बह रही थीं .बाद में मालूम हुआ कि यह कछार किसी नदी का अंग नहीं है बल्कि यह पहाड़ों में होने वाली वर्षा के पानी से बना है .
सब मिलाकर बड़ा सुन्दर दृश्य नज़र आता है .
इन जलधाराओं में से होकर ही सब यात्री और वाहन आगे मंदिर की ओर बढ़ रहे थे .पहले से भी काफी वाहन मन्दिर के सामने कछार में ही खड़े थे .
मैंने भी अपनी कार एक ट्रैक्टर -ट्रोली के पीछे--पीछे कछार में उतारी और जलधाराओं को पार करते हुए सामने के किनारे के पास ले जाकर खड़ी  कर दी .
कार पार्क करके हम लोग मंदिर की ओर बढे .
मन्दिर में माता के दर्शन करके जब हम लोग बाहर निकले तब मन्दिर के सामने एक ट्रक और एक कार को कीचड--गारे में फंसा हुआ देखा .देख कर बड़ी हैरानी हुई ,पूछने पर मालूम हुआ ,
जब भी ऊपर देहरादून आदि पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा होती है तो वर्षा का  जल बड़े वेग से जल की बहुत बड़ी धारा के रूप में  इधर से होकर निकलता है
वर्षा का यह जल अपने साथ टनों मिट्टी  और हर साइज़ / आकार के पत्थर भी लाता है .
1 तारीख की शाम को ऊपर से वर्षा के जल के साथ बह कर आए मिट्टी - गारे और पत्थरों की बाढ़ में  अभी भी यह दोनों ट्रक और कार फंसे हुए थे .
ट्रक अपने पिछले दायें पहिये पर ज़मीन से 80 डिग्री का कोण बनाए बड़ी असंभव सी स्तिथि में गारे में धंसा हुआ खडा था .उसे गारे से निकालने के लिए सहारनपुर से क्रेन बुलवाई गई थी और उसके पिछले भाग में भरे मिट्टी -गारे और पत्थरों को निकालने के लिए लोग बड़ी मेहनत  कर रहे थे .
कार का तो और भी बुरा हाल  था ,कार बेकार हुई पड़ी थी .वर्षा के पानी की तेज़ रफ़्तार और पत्थरों की मार से कार के शीशे टूट गए थे और पूरी कार कीचड -गारे से भर गई थी .
यह सब प्रक्रिति की लीला ही है .
एक ओर प्रकृति का यह ताण्डव  नृत्य और दूसरी ओर उसका मनोरम रूप .
  इस मनोरम कछार के एक ओर ऊँचाई पर माता शाकुम्भरी देवी का मंदिर है ,जिसके बाहर टेंटों का टेम्परेरी बाज़ार भी लगता है .
इस बाज़ार में यात्रियों की सुविधा के लिए हर प्रकार का सामान उपलब्ध होता है .
मंदिर और बाज़ार के सामने कछार के दुसरे किनारे पर चार-पांच  धर्मशाला और एक आश्रम स्थित हैं..धर्मशाला यात्रियों के विश्राम के लिए हैं .आजकल के हिसाब से धर्मशाला बस ठीकठाक ही हैं .
आश्रम , श्री स्वरूपानंद जी ,शंकराचार्य जी द्वारा बनवाया गया है और उन्हीं की देखरेख में संचालित है .सन्त   गण 12 महीने इस आश्रम में रहते हैं और भगवती की आराधना में लीन  रहते हैं .आश्रम में संस्कृत का एक विद्यालय भी है ,जहां 70-75 विद्यार्थी निशुल्क अध्ययन करते हैं .विद्यार्थियों के रहने खाने का प्रबंध आश्रम की ओर से मुफ्त किया जाता है .विद्यालय में पढ़ाने वाले आचार्य गण विद्वान् व त्यागमूर्ति हैं .

माँ शाकुम्भरी दर्शन

मंदिर के प्रवेशद्वार के साथ ही पूजा सामिग्री बेचनेवाला बैठा है .
10-12 सीढियां चढ़कर भक्त मंदिर के प्रांगण में पहुँचते हैं .चैत्र  एवम अश्विन के नवरात्र में यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है और तब भक्त बहुत बड़ी संख्या में यहाँ इकट्ठा होते हैं .तब माता के दर्शनों के लिए बहुत लम्बी लाइने
लगती हैं और घन्टों  की प्रतीक्षा के बाद माता के दर्शन हो पाते हैं .वैसे चौदस को भी काफी भीड़ रहती है .
हम जब गए तब कोई अधिक भीड़ नहीं थी .15-20 मिनट लाइन में खड़े होने के बाद माता के दिव्य स्वरुप के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ .मंदिर के प्रवेशद्वार पर एक खुलने और बंद किये जाने वाला जंगला लगा है .मंदिर के प्रवेशद्वार पर ही एक विशाल मेज़ पर 2-3 पुजारी बैठे रहते हैं ,और भक्तों से चढ़ावा आदि लेते रहते हैं और उन्हें प्रसाद देते रहते हैं .
भक्त बाहर से ही माता के दिव्य विग्रह के दर्शन कर अपने को धन्य मानते हैं .

सामने माता की 4मोहनी मूरत गणेष जी की एक छोटी सी मूर्ती के साथ विराजमान हैं .
सामने चबूतरे पर पूर्वाभिमुख माता शाकुम्भरी देवी  अपने 3 स्वरूपों , शाकुम्भरी , शताक्षी  और  भ्रामरी के रूप में गणेश जी के साथ विराजमान हैं  तो उनके बाईं ओर उत्तराभिमुख होकर माता अपने भीमा देवी स्वरुप में विराजमान हैं .
शाकुम्भरी देवी के इन चारों स्वरूपों का वर्णन '' दुर्गा सप्तशती '' में आता है .

दर्शन करके प्रशाद ग्रहण करने के बाद देखा कि मन्दिर की परिक्रमा में पीछे की ओर और भी मंदिर बने हैं .
मन्दिर के सामने , उसके दाएँ ओर एक हवन  कुण्ड  भी बना है , जहां भक्त अनुष्ठान आदि करके हवन कर सकते हैं .
ढोल वाले वहां ढोल बजाते हुए भक्तों की मंगल कामनाओं की पूर्ती की आस लगाए भक्तों से बख्शीश मांगते नज़र आते है .

भगवती के दर्शन करके बहुत आनन्द  आया और मुंह से बरबस ही निकल गया ,

 '' शेरां वाली माता तेरी सदा ही जय ''                                                                                                              ' ' बोल साचे दरबार की जय ''

माँ भगवती से प्रार्थना करता हूँ कि  आप सब को बहुत जल्द दर्शन देकर आपका जीवन धन्य --धन्य करे .



Thursday, March 1, 2012

कमला-1

कमला-1 
बहुत पुरानी बात बताने जा रहा हूँ .
यही कोई 1957-58  की घटना है .करीब 54-55 साल पहले की .
अब सवाल यह उठता है कि इतने बरसों बाद इतनी पुरानी बात क्यों ले कर बैठ गया हूँ .
तो हुआ कुछ यूं साहेबान कि पिछले हफ्ते एक दिन  शाम को हमारी गली के  हमारे कुछ अड़ोसी-पडोसी अपने-अपने काम से करीब-करीब एक साथ  लौट कर घर आये . अपनी-अपनी कार पार्क करके आपस में दुआ-सलाम करते हुए खन्ना जी के घर के सामने आन खड़े हुए . दुआ सलाम के बाद बातों का सिलसिला कुछ ऐसा खिंचा कि वहीं खन्ना जी के आँगन में सब लोग कुर्सियों पर जम गए .श्रीमती खन्ना ने शाम की चाय का दौर चला दिया .
बातों-बातों में ज़िक्र नारी की आज की परिस्थिति का छिड़ गया .
बहस का मूड भांपते हुए खन्ना जी ने अपने छोटे पुत्र को भेज कर मुझे भी बुलवा भेजा .
मैंने वहाँ पहुँच कर पाया कि वहाँ करीब आठ-नौ लोग इकट्ठा हो चुके थे और बहस इस मोड़ पर थी कि आजकल औरतों के अधिकारों को लेकर कुछ ज़्यादा ही प्रगतिशीलता का ढोंग हो रहा है .यहाँ तक कि आजकल मीडिया की शह पाकर औरतें भी अनाप-शनाप  हरकतों पर उतर आई हैं .
मेरी जान-पहचान के सभी लोग यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि मैं नारी के अधिकारों और उसकी अस्मिता की रक्षा का बहुत बड़ा पक्षधर हूँ , और इसी लिए बहस का मूड भांपते हुए खन्ना जी ने मुझे बुलवा भेजा था . 
वहाँ मौजूद लोगों में एक-आध को छोड़कर बाकी सब औरतों से खार खाए नज़र आ रहे थे .
बहस का विषय बहुत पुराना और घिसापिटा यानी दकियानूसी था , जिसका अन्त मैंने अधिकतर मनमुटाव से होता पाया है .
मेरा यह मानना है कि पिछली कई शताब्दियों से औरत को समाज में घुट-घुट कर पिसते हुए अपना जीवन नष्ट करना पडा है .अपवाद सदा से होते आये हैं ,आज भी हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे .
मैं असमंजस में था कि कैसे इस गरमा-गरम माहौल को प्रेम और ख़ुशी के वातावरण में समाप्त करूँ कि खन्ना जी ने मेरी समस्या का हल मुझे सुझा दिया .
खन्ना जी बोले ," भाई साहब , वो मुज्ज़फ्फर नगर वाली बात इन सब को भी सुनाइए जो आप ने पिछले महीने हमें सुनाई थी ".
मैंने सब से कहा कि जिस बात का खन्ना जी ज़िक्र कर रहे हैं वह बहुत पुरानी है , आज से कोई 54-55 साल पुरानी .उस समय ना तो कोई मीडिया नाम की चीज़ थी और ना ही औरतों के अधिकारों को लेकर संघर्ष करने वाली कोई संस्थाएं , लेकिन उस समय भी कोई -कोई स्त्री ऐसी जीवट वाली उभर कर सामने आती थी कि उसकी शौर्य-गाथा सारे समाज में प्रशंसा का विषय बन जाती थी .
यह एक युवति के संघर्ष की बहुत पुरानी किन्तु सच्ची कहानी है .
अब क्योंकि कहानी काफी लम्बी है , और इस समय आप सब का इंतज़ार आप लोगों के अपने-अपने घरों में हो रहा है तो मेरा सुझाव यह है कि  इस समय यह महफ़िल कल तक के लिए बर्खास्त कर दी जाए और कल क्योंकि छुट्टी का दिन है तो आप सब लोग भोजन करने के बाद किसी भी समय जो सब को उचित लगे मेरे घर आ जाएँ , मैं आप सब लोगों को बरसों  पहले की ,रूढ़िवादी माने  जाने वाले जाट परिवार में पैदा हुई , एक लड़की की कहानी सुनाऊंगा तो आप सभी लोग यह मान जाओगे की औरत के संघर्ष की कहानी आज किसी मीडिया के कारण नहीं बढ़-चढ़ रही बल्कि औरत पुरातन काल से अपनी लड़ाई खुद अपने दम पर लडती और जीतती आ रही है .
सब को मेरा प्रस्ताव जंचा और अगले रोज़ दोपहर दो बजे फिर से मेरे घर पर इकट्ठा होने पर एकमत होकर उस समय की सभा आनन्द पूर्वक विसर्जित हो गई . मैंने भी चैन की सांस ली .
घर पहुँचने पर सारा सिलसिला श्रीमति जी को भी बताया तो वो हंसने लगीं और बोलीं , " तो आप कमला की शादी और उसको लेकर हुए हडकंप की कहानी सुनाना चाहते हो , बहुत बढ़िया बात चुनि है आपने  सब लोगों को समझाने ले लिए , लेकिन उस समय की तरह आज भी काफी लोग सारी बात जानने के बाद  दुविधा में ही रह जायेंगे ".
"क्यों आज क्या लोग घर-जमाई नहीं रहते ?" मैंने कहा .
" रहते हैं , और उन दिनों भी रहते थे किन्तु उस समय के दकियानूसी दौर में जाटों जैसे रूढ़िवादी परिवारों में घर-जमाई बनाने की शर्त एक लड़की द्वारा रखना और वो भी कई तरह की दूसरी शर्तों के साथ , कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी ".
'' इसीलिए तो सुनाने लायक कहानी है ''.मैंने कहा और भोजन करने बैठ गया .