Thursday, November 24, 2011

स भ्य-असभ्य


   स भ्य-असभ्य                                                                                                                                                                        कुछ दिन पहले  टाइम्स आफ इंडिया में एक दृष्टान्त पढ़ा था , बहुत अच्छा लगा , मन चाहा कि सब के साथ शेयर करूं सो लिख रहा हूँ , मुझे विश्वास है कि आप सब भी इसे बहुत पसंद करेंगे .

दृष्टान्त के लेखक महोदय दक्षिण भारतीय हैं और उन्होंने एक  काफी पुरानी घटना का वर्णन किया है .

किसी कार्यवश उन्हें  अपने शहर से ट्रेन द्वारा  कोलकाता जाना था . उनकी रिज़र्वेशन फर्स्ट क्लास के कूपे में ऊपर वाली बर्थ कि थी . जब उन्होंने कूपे में प्रवेश किया तो उन्होंने पाया  कि नीचे वाली बर्थ का यात्री पहले से ही अपनी बर्थ पर बैठा था . उसका अपनी बर्थ पर मौजूद होना कोई बड़ी बात नहीं थी , बड़ी बात थी उस आदमी का फर्स्ट क्लास कूपे की बर्थ पर ( जिसका कि वो पूरी यात्रा के दौरान इकलौता मालिक था ) दोनों पैर सिकोड़ कर एक कोने में गड्ड-मड्ड हो कर उकडू बैठे होना .

खैर ,  उन्होंने बहुत गरम-जोशी दिखाते हुए और अपना सहयात्री होने का धर्म निभाते हुए इन महाशय को नमस्कार किया और कहा ," जनाब , मैं हावड़ा तक जाऊंगा . आप कहाँ तक चलेंगे ? ".

नमस्कार या उनकी बात का जवाब देना तो दूर इन महाशय ने उनकी तरफ नज़र उठा कर देखना भी गवारा नहीं किया .

तभी कंडक्टर ने कूपे में प्रवेश किया . दोनों की टिकेट्स चेक कीं और गुड-नाईट बोल कर चला गया .

लेखक महोदय ने जब सहयात्री का बेरुखा रुख देखा तो आगे और कोई बात ना करते हुए चुप-चाप अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चादर बिछा कर जा लेटे , और नाईट लैम्प  जलाकर किताब पढने लगे .

गाडी  धीरे-धीरे चलती हुई तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगी . कुछ देर बाद लेखक महोदय को लगा कि भोजन कर के सोने का प्रोग्राम बना लेना चाहिए .

उनकी धर्मपत्नी ने काफी सारी इडलियाँ भोजन के लिए पैक कर दी थीं अतः उन्होंने इडलियों वाला टिफिन निकाला और एक पुराना अखबार अपने सामने बर्थ पर बिछा कर उस पर टिफिन रखकर आराम से भोजन करने की तैयारी करने लगे .  पुराना अखबार  शायद  इसी काम के लिए उनकी पत्नी ने  टिफिन के साथ रख दिया था . लेखक महोदय अपनी बर्थ से नीचे उतरे और कूपे से बाहर निकल कर सिंक पर हाथ धोकर कूपे में वापिस आये और अपनी बर्थ पर चढ़ने से पहले इन महाशय से बोले , " जनाब , मैं भोजन करने जा रहा हूँ ,मेरे पास घर की बनी काफी इडलियाँ हैं यदि आप कहें तो आप को भी दूं , यकीन मानिए मेरी बीवी बहुत बढ़िया इडली बनाती है , आपको बहुत पसंद आयेंगी " .
लेकिन वो महाशय इनका निमंत्रण स्वीकार करने की बजाय मुंह ही मुंह में कुछ बडबड करके  रह गए . लेखक महोदय ऊपर अपनी बर्थ पर जाकर अपनी धर्मपत्नी की दी हुई इडलियों का प्रेम पूर्वक आनंद लेने लगे .इतने में कूपे में बैरे ने प्रवेश किया और लेखक महोदय को पहले से अपने घर से लाये भोजन का आनंद लेता देखकर इन महाशय से रात के भोजन का ऑर्डर पूछने लगा और नान-वेज भोजन का ऑर्डर लेकर वापिस चला गया .

लेखक महोदय ने भोजन करके बची हुई इडलियाँ जो कि अभी भी काफी ज़्यादा थीं , टिफिन में बन्द करके रख दीं और भोजन के लिए अपने सामने बिछाया हुआ पुराना अखबार सावधानी से समेटकर कूपे से बाहर हाथ धोने और कुल्ला आदि करने और अखबार को कूड़ेदान के हवाले करने चले गए . अपनी बर्थ पर वापिस पहुँच कर लेखक महोदय सोने कि तैयारी करने लगे .

इतने में बैरा इनके लिए भोजन कि थाली लेकर कूपे में आया जिसे इन महाशय ने एक प्रकार से उसके हाथ  से झपट कर ले लिया और उसी उकडू  हालत में बैठे-बैठे मुर्गे पर टूट पड़े .

लेखक महोदय हँस  कर करवट बदल कर सो गए .

लेखक महोदय की जब आँख खुली तो उन्होंने पाया कि सुबह हो चुकी थी और गाड़ी किसी स्टेशन पर खड़ी थी .

उन्होंने सहयात्री को देखने के लिए नीचे कि सीट कि तरफ झांका तो उसे सामान सहित गायब पाया . यानी वो रास्ते में किसी स्टशन पर उतर गया था.

लेकिन वो महाशय अपनी निशानी के रूप में  अपने  खाए हुए मुर्गे के  अवशेष ज़रूर छोड़ गए थे जो फर्श पर चरों तरफ बिखरे पड़े थे .

लेखक महोदय अपनी बर्थ से नीचे उतरे और कूपे से बाहर निकल कर कंडक्टर से कूपे की सफाई करवाने को कहा .

पूछने पर मालूम हुआ कि जिस स्टेशन पर गाडी खड़ी थी वहाँ इंजन आदि बदलने के लिए गाडी आधा घंटा रूकती थी , यानी गाडी चलने में अभी काफी देर थी .

कूपे कि सफाई हो जाने के बाद लेखक महोदय नीचे वाली सीट पर बैठ कर खिड़की से बाहर झांकते हुए प्लेटफार्म का नज़ारा करने लगे .

उन्होंने देखा कि सामने एक बहुत गरीब और फटेहाल औरत अपनी गठड़ी समेटे बैठी हुई थी और उसके साथ ही उससे लगा हुआ एक कुत्ता भी बैठा था , दोनों निर्विकार भाव से प्लेटफार्म पर आते-जाते लोगों को देख रहे थे .

लेखक महोदय उठे और टिफिन से बची हुई इडलियाँ निकाल कर एक अखबार के कागज़ में लपेटीं और बाहर जाकर उर औरत को दे आये .

उन्होंने देखा कि उस औरत ने उठकर पास में लगे नल पर जाकर पहले अच्छी तरह से हाथ धोये और फिर अपनी जगह पर आकर बैठ गयी और अखबार खोल कर इडली निकाली  . बड़ी हैरानी कि बात ये थी  कि  इस बीच उस भूख से बेहाल कुत्ते ने इडली वाले पैकेट को सूंघने तक की  भी कोशिश  नहीं की थी .

उस औरत ने बारी-बारी से चार इडलियाँ कुत्ते के सर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए अपने हाथ से उस कुत्ते को खिलाईं  और जब कुत्ते ने मुंह फेर कर जतला दिया की उसका पेट भर चुका है तब वो फिर नल पर जाकर अच्छी तरह से हाथ धोकर आई और  अपने स्थान पर आकर बैठ गयी .उसने दोनों हाथ जोड़ कर अपने भोजन को व अपने ईश्वर को प्रणाम किया और फिर बड़े प्रेम से उन एक दिन की बासी इडलियों को  खाने लगी .  लेखक महोदय बड़े मंत्रमुग्ध भाव से उस औरत को देखे जा रहे थे .भोजन करके उसने बची हुई इडली को अखबार में लपेटा और नल पर जाकर कुल्ला आदि करके बड़ी तृप्ति पूर्ण   मुस्कान लेखक महोदय की ओर डाली .

उस समय तो लेखक महोदय दंग ही रह गए जब उन्होंने देखा कि उस औरत ने उस स्थान पर गिरे भोजन के छोटे-छोटे टुकड़ों को झाड-बुहार कर प्लेटफोर्म के उस स्थान को अच्छी तरह से साफ़ किया और फिर  नल पर जाकर हाथ धोकर प्लेटफार्म के दूसरी ओर चल पड़ी .

गाडी चल पड़ी .

लेखक महोदय हैरान -परेशान , सोचे  जा रहे थे कि कौन था फर्स्ट क्लास के उस कूपे में यात्रा करने का असली  हक़दार  ,  कल वाला उनका सहयात्री या ये फटेहाल गरीब औरत ?

आपका क्या विचार है ?

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