Thursday, March 1, 2012

कमला-1

कमला-1 
बहुत पुरानी बात बताने जा रहा हूँ .
यही कोई 1957-58  की घटना है .करीब 54-55 साल पहले की .
अब सवाल यह उठता है कि इतने बरसों बाद इतनी पुरानी बात क्यों ले कर बैठ गया हूँ .
तो हुआ कुछ यूं साहेबान कि पिछले हफ्ते एक दिन  शाम को हमारी गली के  हमारे कुछ अड़ोसी-पडोसी अपने-अपने काम से करीब-करीब एक साथ  लौट कर घर आये . अपनी-अपनी कार पार्क करके आपस में दुआ-सलाम करते हुए खन्ना जी के घर के सामने आन खड़े हुए . दुआ सलाम के बाद बातों का सिलसिला कुछ ऐसा खिंचा कि वहीं खन्ना जी के आँगन में सब लोग कुर्सियों पर जम गए .श्रीमती खन्ना ने शाम की चाय का दौर चला दिया .
बातों-बातों में ज़िक्र नारी की आज की परिस्थिति का छिड़ गया .
बहस का मूड भांपते हुए खन्ना जी ने अपने छोटे पुत्र को भेज कर मुझे भी बुलवा भेजा .
मैंने वहाँ पहुँच कर पाया कि वहाँ करीब आठ-नौ लोग इकट्ठा हो चुके थे और बहस इस मोड़ पर थी कि आजकल औरतों के अधिकारों को लेकर कुछ ज़्यादा ही प्रगतिशीलता का ढोंग हो रहा है .यहाँ तक कि आजकल मीडिया की शह पाकर औरतें भी अनाप-शनाप  हरकतों पर उतर आई हैं .
मेरी जान-पहचान के सभी लोग यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि मैं नारी के अधिकारों और उसकी अस्मिता की रक्षा का बहुत बड़ा पक्षधर हूँ , और इसी लिए बहस का मूड भांपते हुए खन्ना जी ने मुझे बुलवा भेजा था . 
वहाँ मौजूद लोगों में एक-आध को छोड़कर बाकी सब औरतों से खार खाए नज़र आ रहे थे .
बहस का विषय बहुत पुराना और घिसापिटा यानी दकियानूसी था , जिसका अन्त मैंने अधिकतर मनमुटाव से होता पाया है .
मेरा यह मानना है कि पिछली कई शताब्दियों से औरत को समाज में घुट-घुट कर पिसते हुए अपना जीवन नष्ट करना पडा है .अपवाद सदा से होते आये हैं ,आज भी हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे .
मैं असमंजस में था कि कैसे इस गरमा-गरम माहौल को प्रेम और ख़ुशी के वातावरण में समाप्त करूँ कि खन्ना जी ने मेरी समस्या का हल मुझे सुझा दिया .
खन्ना जी बोले ," भाई साहब , वो मुज्ज़फ्फर नगर वाली बात इन सब को भी सुनाइए जो आप ने पिछले महीने हमें सुनाई थी ".
मैंने सब से कहा कि जिस बात का खन्ना जी ज़िक्र कर रहे हैं वह बहुत पुरानी है , आज से कोई 54-55 साल पुरानी .उस समय ना तो कोई मीडिया नाम की चीज़ थी और ना ही औरतों के अधिकारों को लेकर संघर्ष करने वाली कोई संस्थाएं , लेकिन उस समय भी कोई -कोई स्त्री ऐसी जीवट वाली उभर कर सामने आती थी कि उसकी शौर्य-गाथा सारे समाज में प्रशंसा का विषय बन जाती थी .
यह एक युवति के संघर्ष की बहुत पुरानी किन्तु सच्ची कहानी है .
अब क्योंकि कहानी काफी लम्बी है , और इस समय आप सब का इंतज़ार आप लोगों के अपने-अपने घरों में हो रहा है तो मेरा सुझाव यह है कि  इस समय यह महफ़िल कल तक के लिए बर्खास्त कर दी जाए और कल क्योंकि छुट्टी का दिन है तो आप सब लोग भोजन करने के बाद किसी भी समय जो सब को उचित लगे मेरे घर आ जाएँ , मैं आप सब लोगों को बरसों  पहले की ,रूढ़िवादी माने  जाने वाले जाट परिवार में पैदा हुई , एक लड़की की कहानी सुनाऊंगा तो आप सभी लोग यह मान जाओगे की औरत के संघर्ष की कहानी आज किसी मीडिया के कारण नहीं बढ़-चढ़ रही बल्कि औरत पुरातन काल से अपनी लड़ाई खुद अपने दम पर लडती और जीतती आ रही है .
सब को मेरा प्रस्ताव जंचा और अगले रोज़ दोपहर दो बजे फिर से मेरे घर पर इकट्ठा होने पर एकमत होकर उस समय की सभा आनन्द पूर्वक विसर्जित हो गई . मैंने भी चैन की सांस ली .
घर पहुँचने पर सारा सिलसिला श्रीमति जी को भी बताया तो वो हंसने लगीं और बोलीं , " तो आप कमला की शादी और उसको लेकर हुए हडकंप की कहानी सुनाना चाहते हो , बहुत बढ़िया बात चुनि है आपने  सब लोगों को समझाने ले लिए , लेकिन उस समय की तरह आज भी काफी लोग सारी बात जानने के बाद  दुविधा में ही रह जायेंगे ".
"क्यों आज क्या लोग घर-जमाई नहीं रहते ?" मैंने कहा .
" रहते हैं , और उन दिनों भी रहते थे किन्तु उस समय के दकियानूसी दौर में जाटों जैसे रूढ़िवादी परिवारों में घर-जमाई बनाने की शर्त एक लड़की द्वारा रखना और वो भी कई तरह की दूसरी शर्तों के साथ , कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी ".
'' इसीलिए तो सुनाने लायक कहानी है ''.मैंने कहा और भोजन करने बैठ गया . 





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